असलमो एलैकुम दोस्तो प्यारे आका के प्यारे दीवानो क्या आपको पता है तौहीद का बयान क्या है, तौहीद का मतलब क्या है। अल्ल्हा ताला अपने बंदो से क्या कहना चाहता है? आज हम यहां तौहीद के वरे में सब कुछ जानेंगे।
तो आईये शूरु करते हैं तौहीद के बयान के बारे में……..
tauheed ka bayan : तौही़द (एक ख़ुदा को मानना) का बयान
इस्लाम के पांच अरकानों में से पहला और सबसे अहम अरकान अक़ीदएतौह़ीद है,तौह़ीद तमाम अक़ीदों की शुरुआत और जड़ है, जिस तरह किसी पेड़ की बुनियाद शाखों से नहीं बल्कि जड़ से होती है इसी तरह अक़ीदएतौह़ीद पर ईमान के बग़ैर कोई शख़्स मुसलमान नहीं रह सकता| जो लोग एक से ज़्यादा खुदा को मानते हैं अल्लाह ताला ने क़ुरान मजीद में उनको साफ साफ काफिर कह दिया है| क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरान मजीद में इरशाद फ़रमाया

तरजुमा( कनज़ुल ईमान)
बेशक काफ़िर हैं वह लोग जो कहते हैं अल्लाह तआला तीन खुदाओं में में से तीसरा खुदा है ,हालांकि ख़ुदा कोई नहीं है, सिर्फ एक खुदा के , और अगर वह अपनी इस बात से बाज़ ना आए तो जो उनमें से काफिर मरेंगे उन पर दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा|
एक खुदा को मानने का अक़ीदा इंसान के तमाम नेक कामों और तमाम नेक अख़लाकों की क़ुबूलियत का पहला ज़रिया है| कुरान मजीद में एक खुदा को मानने से इनकार करने वालों के आ़माल को उस राख की तरह बताया है, के जिसे हवा के तेज़ झोंके उड़ा उड़ा कर बे नामो निशाँ कर दें|
क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरान मजीद में इरशाद फ़रमाया

तरजुमा( कनज़ुल ईमान)
अपने रब का इनकार करने वालों के आ़माल उस राख की तरह होंगे, जिस पर आंधियों के दिनों में तेज़ तूफान आ जाए तो वह अपनी कमाइयों में से किसी चीज़ पर भी क़ादिर न रहे, यही दौर की गुमराही है|
अक़ीदएतौह़ीद ( एक खुदा को मानने का अक़ीदा) की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है, कि आदम अलैहिस्सलाम से लेकर ईसा अलैहिस्सलाम तक जितने भी आसमानी मज़हब आए तमाम मज़हबों और दीनों की बुनियाद अक़ीदएतौह़ीद ( एक खुदा को मानने का अक़ीदा)पर ही है| तमाम रसूल और अंबिया अलेहिमुस्सलाम इसी नज़रियएतौह़ीद की तबलीग़ के लिए दुनिया में तशरीफ लाए|
जैसा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इरशाद फरमाया

तरजुमा( कनज़ुल ईमान)
और हमने तुमसे पहले कोई रसूल ना भेजा मगर यह के हम उसकी तरफ ” वही़ “फरमाते के मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, तो मुझी को पूजो|
tauheed kia ha : तौही़द क्या है
तौहीद का माना है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की ज़ात को उसकी ज़ात और सिफात में शरीक से पाक मानना यानी जैसा अल्लाह तआला है वैसा किसी को ना माने जैसे अल्लाह तआला सुनता है, इल्म रखता है, देखता है वैसा किसी दूसरे को ना जाने मिसाल के तौर पर यह न समझे “फुलां शख्स सुनने में देखने में और इल्म में अल्लाह की तरह है” अगर कोई यह अक़ीदा रखता है तो वह मुशरिक है
“हज़रत अल्लामा इब्राहीम बिन मुहम्मद बाजूरी अलैहिर्रहमा इरशाद फरमाते हैं, के अल्लाह तआला अपनी ज़ातओसिफात में तन्हा एक है| यानी ज़ातओसिफात में उसका कोई शरीक नहीं| जा़त के वाह़िद होने का मतलब है कि वह अजज़ा से मिलकर बने होने से पाक है यानी हाथ, नाक, मुंह,कान पैर से पाक है| सिफ़ात में तनहा होने से यह मुराद है, उसके इल्म कि उसकी क़ुदरत की कोई हद नहीं है यानी यह मानना कि उसके पास दो इल्म हैं या दो कुदरतें हैं “यह सब तो फिर है”
इसी इसी तरह अफआ़ल में एक होने का मतलब है कि अल्लाह तआला के अफ़आ़ल में ना कोई उसका शरीक है ना कोई उसका मददगार यानी यह मानना कि आसमान और ज़मीन दो ख़ुदाओं ने मिलकर बनाई है यह शिर्क है|
tauheed or shirk me fark : तौह़ीद और शिर्क में फर्क
किसी के जे़हन में यह “सवाल”पैदा हो सकता है के इल्म अल्लाह तआ़ला की सिफत है अगर कोई दूसरे के लिए इल्म साबित करे तो क्या ये शिर्क होगा ??
” जवाब”- अल्लाह पाक की हयात(ज़िंदा)होने पर तो सब का ईमान है| और वह लोग कि जिन्हें अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सिफ़ते ह़यात अ़ता फरमाई तो हमारी ह़यात(जिंदगी) अता की हुई है, यानी उसे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने बनाया है, और अल्लाह तआ़ला की ह़यात(ज़िंदगी) हमेशा से है और हमेशा तक रहेगी और हमारी ह़यात( जिंदगी) ना हमेशा से है और ना हमेशा रहेगी हम अपनी जिंदगी को एक हद तक मानते हैं लेकिन अल्लाह ताला की जिंदगी तो हमेशा तक है और यही सब को मानना चाहिए तो यहां शिर्क ख़त्म हो गया|
Ek khuda bas tanha ha : एक ख़ुदा बस तनहा है
जब एक शहर में दो बादशाह नहीं हो सकते एक देश में दो प्रधानमंत्री नहीं हो सकते एक ज़िले में दो डीएम नहीं हो सकते क्योंकि पहला दूसरे के ऊपर और दूसरा पहले के ऊपर अपना हुक्म चलाएगा| तो फिर खुदा कैसे दो हो सकते हैं क्योंकि अगर ऐसा होता तो तमाम आलम का निज़ाम दरहम -बरहम हो जाता | एक चांद एक सूरज का होना एक दुनिया का होना अल्लाह तआला के एक होने को साबित करता है|
और इसी बात का रद्द करने के लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने कुरान मजीद में इरशाद फरमाया

तरजुमा( कनज़ुल ईमान)
अल्लाह तआला ने कोई बच्चा इखंतियार ना किया | और ना उसके साथ कोई दूसरा खुदा| अगर ऐसा होता तो दूसरा खुदा अपनी मखलूक ले जाता और ज़रूर एक- दूसरे पर अपनी बड़ाई चाहता | पाकी है अल्लाह को उन बातों से जो यह बनाते हैं |
एक और मक़ाम पर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इरशाद फरमाया

तरजुमा( कनज़ुल ईमान)
और अल्लाह तआला ने फरमाया दो ख़ुदा न ठहराव ,वह तो एक ही माबूद है ,तुम मुझे से डरो
Conclusions : नतिज़ा
हमने इस पोस्ट में पूरी कोशिश की है की हम सब को तौहीद के बारे में सब कुछ पता लग जाए. हमने यहां तौहीद के बयान के बारे में बताया है, अल्लाह ताला कुरान में अपने बंदो से क्या कहना चाहता है, यह बताया है।
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इस पोस्ट को लिखने मैं या कहने में कोई गलती हो गई हो तो अल्लाह से दुआ है की वो अपने महबूब के सदके से गलती को माफ कर दे।