Sehri wa Iftar ka bayan : सहरी व इफ़्तार का बयान

सहरी और इफ़्तार के बारे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कुछ फरमान हम यहां लिखेंगे और उनके साथ कुछ सवालात का जवाब देंगे

हदीस:- तिब्रानी ओसत में और इब्ने हब्बान सही में इब्ने उमर रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह और उसके फरिश्ते सहरी खाने वालों पर दुरुद भेजते हैं

हदीस:- इब्ने माजा व इब्ने खुज़ैमा व बहकी इब्ने अब्बास रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सहरी खाने से दिन के रोज़े पर इस्तियानत करो (मदद चाहो) और कैलुला (दोपहर में खाने के बाद थोड़ी देर लेटने को कैलूला कहते हैं और ये सुन्नत है) और रात को कयाम करो ।

हदीस:- तिब्रानी में अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तीन लोगों पर खाने में इंशा अल्लाह हिसाब नहीं जबकि हलाल खाया (1)रोज़ादार (2) सहरी खाने वाला (3)सरहद पर घोड़ा बांधने वाला

Sehri khana farz hai ya sunnat : सहरी खाना फर्ज़ है या सुन्नत:-

सहरी खाना न तो फर्ज़ है न सुन्नते मुअक्किदा बल्कि मुस्तहब है और सहरी में बरकत भी है एक हदीस है

हदीस:- तिब्रानी ने कबीर में सलमान फारसी रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तीन चीज़ों में बरकत है (1)जमात (2)सरीद(रोटी को सालन में मलके खाना) (3)सहरी

हदीस:- बुखारी व मुस्लिम व तिरमीज़ी व नसई व इब्ने माजा में अनस रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सहरी खाओ कि सहरी खाने में बरकत है।

Sehri ka waqt konsa hai : सहरी का मुस्तहब वक्त कोनसा है:-

सहरी देर से खाना मुस्तहब और सुन्नत है हदीस शरीफ़ में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेरी उम्मत हमेशा भलाई पर रहेगी जब तक इफ्तार में जल्दी और सहरी में देर करेगी सहरी आखरी वक्त में खाने का मतलब ये है उस वक्त तक खाए जब तक फजर का वक्त शुरू ना हो ।इतनी देर तक खाना मकरूह है की सुबाह होने का शक हो जाए।

Sehri ka bilkul chod dena kaisa hai : सहरी का बिल्कुल छोड़ देना कैसा है:-

सहरी बिल्कुल छोड़ देना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हुक्म की खिलाफ़ वरज़ी करना है

हदीस:- मुस्लिम व अबू दाऊद व तिरमीज़ी व नसई व इब्ने खुज़ैमा अम्र इब्ने आस रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हमारे और अहले किताब(ईसाई और यहूदी) के रोज़ों में फर्क सहरी का लुकमा है।

इसलिए कमसे कम एक लुकमा खाले या घूंट पानी पी ही ले ताकि रोज़ा सुन्नत के मुताबिक अदा हो जाए।

हदीस:- नसाई में एक सहाबी से रिवायत है कि मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ और हुज़ूर सहरी तनावुल फरमा रहे थे इरशाद फरमाया ये बरकत है कि अल्लाह तआला ने तुम्हें दी तो इसे न छोड़ना।

Sehri pet bharkar khae ya Kam : सहरी पेट भरकर खाए या कम:-

इतना खाना कि दिन को दिल घबराए और डकारें आएं ये भी पसंदीदा नहीं है ,और फिर रोज़े के मक़सद के भी खिलाफ़ है क्योंकि रोज़े का मकसद अपने जिस्म और नफ्स को रोज़े की शिद्दत से मारना है और जब पेट भर खाना खा लिया तो नफ्स को मारना नहीं हुआ तो रोज़े का मकसद हासिल नहीं हुआ। और फिर गरीबों मिस्कीनो की भूख का भी अहसास नहीं होगा। इसलिए इतना पेट भरकर भी न खाए कि रोज़े की बरकत से महरूम हो जाए और इतना कम भी न खाए कि पूरा दिन बस खाने पीने का ही खयाल रहे।

Sehri me murge ki Azan ka etbaar hai ya nahin : सहरी में मुर्गे की अज़ान का एतबार है या नहीं:-

सहरी के वक्त मुर्गे की अज़ान का कोई एतबार नहीं है ,अक्सर देखा गया है सुबह से बहुत पहले ही मुर्गे अज़ान देना शुरू कर देते हैं ,कभी उजाला हो तो देने लगते हैं और कभी लोगों की बोलचाल सुनकर अज़ान देने लगते हैं।

Taare dekhkar iftaar karna kaisa hai : तारे देखकर इफ्तार करना कैसा है:-

तारे की सनद शरई नहीं बाज़ तारे दिन में भी नज़र आ जाते हैं तो उन्हें देखकर रोज़ा इफ्तार करना कैसे ठीक हो सकता है।और अगर इफ्तार में इतनी देर की के मगरिब के बाद जो तारे दिखते हैं वोह दिखने लगें तो रोज़ा इफ्तार किया तो यह राफज़ियों का तरीका है

हदीस:- इब्ने हब्बान से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेरी उम्मत सुन्नत पर रहेगी जब तक जब तक इफ्तार में सितारों का इंतज़ार न करे।

हदीस:- बुखारी शरीफ में सहल इब्ने सआद रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हमेशा लोग भलाई के साथ रहेंगे जब तक इफ्तार में जल्दी करेंगे।

बिल आखिर यह है की जब सूरज के डूबने का यकीन हो जाए तो रोज़ा इफ्तार लें

Kisi masjid se azan sunkar roza iftar sakte hain : किसी मस्जिद से अज़ान सुनकर रोज़ा इफ्तार सकते हैं:-

अगर सूरज डूबने का यकीन हो और अज़ान की आवाज़ किसी ऐसी मस्जिद से आ रही है जहां रोज़े के वक्त का खयाल रखकर अज़ान पढ़ी जाती है तो अज़ान सुनकर इफ्तार कर लेना चाहिए और अगर सूरज डूबने का यकीन न हो और अज़ान की आवाज़ किसी ऐसी मस्जिद से आ रही है जहां पर वक्त का ठीक तरह एहतिमाम नहीं किया जाता जैसा कि अक्सर गैर मुकल्लिद लोगों की मस्जिद में बहुत से गैर वक्त में अज़ान होती है तो ऐसी मस्जिद की अज़ान से रोज़ा हरगिज़ इफ्तार न करें बल्कि जब यकीन हो जाए कि सूरज डूब चुका है तो ही इफ्तार करें।

नोट! अज़ान से पहले अगर सूरज डूब रहा है और मगरिब की अज़ान देर में हो रही है तो अज़ान से पहले भी रोज़ा इफ्तार सकते हैं बल्कि आज कल तो टाइम मोबाइल फोन में आ जाता है कि सूरज कब डूब रहा है तो मोबाइल फोन के टाइम से भी रोज़ा इफ्तार सकते हैं।

Sayring ya dhol nagade ki awaz se roza iftar karne ka hukm : सायरिंग या ढोल नगाड़े की आवाज़ से रोज़ा इफ्तार करने का हुक्म:-

टीवी या रेडियो या सायरिंग या ढोल नगाड़े की आवाज़ से रोज़ा इफ्तार करने का हुक्म यही है कि अगर ये सारे काम किसी आलिम और रोज़े के वक्त की पाबंदी करने वाले किसी मुफ्ती साहब के हुक्म पर अगर ये काम हो रहा है तो रोज़ा इफ्तार करलें चाहें बजाने वाले फासिक ही क्यूं ना हो इफ्तार कर सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कभी कभी ये सारे काम मगरिब के वक्त से पहले ही शुरू हो जाते हैं तो ऐसी सूरत में क़जा वाजिब हो जाती है इसलिए रोज़ा उसी वक्त इफ्तार करें कब सूरज डूबने का यकीन हो जाए और टीवी रेडियो में अगर दिखाए जाने वाले प्रोग्राम में आपके इलाके के वक्त को बताया जा रहा हो तो ही इफ्तार करें क्यूंकि सूरज अलग अलग जगहों पर थोड़ी देर में या थोड़ी पहले गुरूब हो जाता है इसलिए बहुत एहतियात से और समझदारी से काम लेकर ही रोज़ा इफ्तार करें।

Sehri our iftari ki jantriyon ka kya hukm hai : सहरी और इफ़्तार की जंत्रियों का किया हुक्म है:-

अक्सर देखा गया है कि जंत्रियों में इफ्तार और सहरी का टाइम गलत देखने को मिलता है क्यूंकि बड़े बड़े आलिम और मुहक्किक इल्मे औकात (टाइम के इल्म) से नावाकिफ हैं हां अगर कोई आलिम इल्में वक्त अच्छी तरह जानता है और उसने जंत्रियों को छपवाया है तो अब उन जंत्रियों के हिसाब से रोज़ा सहरी रख सकते हैं लेकिन फिर भी 5 मिनट की एहतियात लाज़िम है इसलिए उन जंत्रियों पे भी लिखा होता है की 5 मिनट सहरी पेहले खाना बंद कर दें और इफ्तार भी 5 मिनट बाद में करें ।

Roza kin cheezon se iftar karna sunnat hai : रोज़ा किन चीज़ों से इफ्तार करना सुन्नत है:-

हदीस मुबारक में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नमाज़ से पहले तर खजूरों से रोज़ा इफ्तार फरमाते थे और अगर ये भी न होती थीं तो खुश्क खजूरों से और अगर ये भी न होती तो चंद चुल्लू भर पानी से।

kisi shakhs ke kahne se iftar kar sakta ha ya nahin : किसी शख्स के कहने से इफ्तार कर सकता है या नहीं;-

अगर कोई शख्स कहता है कि रोज़ा इफ्तार कर लो वक्त हो गया है अब अगर वो शख्स मुत्तकी परहेज़गार और फासिक नहीं है तो रोज़ा इफ्तार कर सकता है लेकिन अगर वोह ऐसा नहीं है तो नहीं कर सकता ।

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