roza makrooh hone ki wajah : रोज़ा मकरूह होने की वजह – Makroohat ka bayan

क्या आपको पता है कि रोज़ा मकरूह केसे होता है, रोज़े के मकरूह होने से क्या होता है। आज हम इस पोस्ट में रोज़े के मकरूह के बारे में मुकममल जानकरी पढेंगे। पोस्ट को पूरा पढ़े बहुत जरूरी है।

Makroohat par kuch hadeesen : मकरूहात पर कुछ हदीसें:-

हदीस:- बुखारी व अबू दाऊद व तिरमिज़ी व नसई व इब्ने माजा में अबू हुरैरा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो अल्लाह तआला को इसकी कोई ज़रूरत नहीं कि वो अपना खाना पीना छोड़े

हदीस:- इब्ने माजा व नसई व इब्ने खुज़ैमा व हाकिम व बहकी व दार्मी में अबू हुरैरा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया बहुत से रोज़ेदार ऐसे हैं कि उनका रोज़ा प्यास के सिवा कुछ नहीं और बहुत से रात को कयाम( नमाज़) करने वाले ऐसे हैं कि उन्हें जागने के सिवा कुछ हासिल नहीं

हदीस:- अबु दाऊद में अबू हुरैरा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया रोज़ा ढाल है जब तक उसे फाड़ा न हो अर्ज़ की गई किस चीज़ से फाड़ेगा । आपने इरशाद फ़रमाया झूठ या गीबत से

हदीस:- इब्ने खुज़ैमा व इब्ने हब्बान व हाकिम अबू हुरैरा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया रोज़ा इसका नाम नहीं कि खाने और पीने से दूर रहना हो रोज़ा तो ये है कि बेहूदा बातों से भी बचा जाए

हदीस:- अबु दाऊद व तिरमिज़ी में आमिर इब्ने रबीआ रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं मैंने बेशुमार बार नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को रोज़े में मिस्वाक करते देखा

रोज़े के मकरूहात की पूरी वजह:- Roze ke Makroohat ki poori wajah

  1. झूठ चुगली गीबत गाली देना बेहूदा बात किसी को तकलीफ पहुंचाना ये चीज़ें वैसे भी नजाईज़ और हराम हैं रोज़े में और ज़्यादा हराम और इनकी वजह से रोज़ा मकरूह भी हो जाता है।
  2. रोज़े दार को किसी चीज़ का बिला वजह चखना या चबाना मकरुह है अगर उसका शौहर खाने में कमी की वजह से उसे डांटता है या फिर नाराज़ होता है तो अब ये उसकी मजबूरी है तो वो चख सकती है। और चबाने के लिए ये हुक्म है कि उसका कोई छोटा बच्चा है और वो खुद चबाकर नहीं खा सकता और कोई नरम खाना नहीं है तो वो चबाकर उस बच्चे को खिला सकती है ।

नोट! चखने के मतलब ये नहीं जो आज कल लोग समझने लगे हैं चखने वाली चीज़ को ज़ुबान पे रखकर नील लेते हैं ऐसा करने से रोज़ा टूट जाएगा और फिर कफ्फारा भी लाज़िम होगा चखने का मतलब ये है कि ज़ुबान पे उस चीज़ को रखे और फिर थूक दे हलक तक न पहुंचे वरना रोज़ा टूट जाता रहेगा ।

  1. कोई चीज़ खरीदी जिसका चखना ज़रुरी है कि अगर नहीं चखेगा तो नुकसान होगा तो चखने में कोई हर्ज नहीं
  2. औरत का बोसा लेना और गले लगाना और बदन छूना मकरूह है जबकि ये अंदेशा हो कि इंज़ाल हो जाएगा या हम्बिस्तरी में मुबतला होने का डर हो । रोज़े में होंठ और ज़ुबान का चूसना मकरूह है।
  3. गुलाब या कोई खुश्बू सूंघना दाढ़ी मोंछ में तेल लगाना और सुरमा लगाना मकरूह नहीं और अगर ज़ीनत के लिए सुरमा लगाया या दाढ़ी बढ़ाने के लिए तेल लगाया तो ये दोनों बातें रोज़े के अलावा में भी मकरूह हैं और रोज़े में तो और ज़्यादा मकरूह हैं।
  4. रोज़े में मिस्वाक करना मकरूह नहीं बल्कि जैसे रोज़ों के अलावा में सुन्नत है वैसे ही रोज़े में भी सुन्नत है मिसवाक गीली हो या खुश्क किसी भी वक्त रोज़े की हालत में मिस्वाक कर सकते हैं।
  5. रोज़ा दार के लिए नाक में पानी चढ़ाने और कुल्ली करने में मुबालगा (जैसा रोज़ों के अलावा में होता है) करना मकरूह है
  6. पानी के अंदर रिया खारिज करना मकरूह है इसी तरह रोज़ेदार को इस्तिंजे में मुबालगा करना भी मकारूह है यानी और दिनों में इस्तिंजा करते वक्त नीचे को ज़ोर दिया जाए और रोज़े में ये मकरूह है। बल्कि बाज़ सूरतों में तो रोज़ा टूट भी सकता है ।
  7. मुंह में थूक इखट्टा करके नीलना बगैर रोज़े के भी नापसंद है लेकिन रोज़े में ये मकरूह है।
  8. रोज़े की हालत में ऐसा काम करना जायज़ नहीं जिससे कमज़ोरी आए जैसे मज़दूर को पूरा दिन मज़दूरी न करके दोपहर तक मज़दूरी करना चाहिए यूंही नान बाई को सिर्फ दोपहर तक ही रोटी पकाना चाहिए और बाकी शाम तक आराम करे।
  9. अगर ये गुमान है कि रोज़ा रखेगा तो खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ मिलेगी तो रोज़ा रखे और बैठकर नमाज़ अदा करे ।
  10. सहरी खाना और थोड़ी देर से खाना मुस्तहब है लेकिन इतनी देर से खाना कि फजर का वक्त शुरू होने का गुमान होने लगे तो मकरूह है।
  11. इफ्तार में जल्दी करना मुस्तहब है ,मगर इफ्तार जब करे जब सूरज डूबने का गुमान गालिब हो जाए और अगर शक हो सूरज डूबा है या नई तो फिर इफ्तार न करे चाहें अज़ान हो गई हो ।और बदलो के वक्त तो देर से ही इफ्तार करना चाहिए(रद्दुल मुख्तार)
  12. एक सच्चे इंसान के ये बताने पे कि सूरज डूब गया है अगर उसकी बात सच्ची मानता है तो इफ्तार करले वरना न करे और अगर कोई फासिक शख्स कहता है कि सूरज डूब गया है अब रोज़ा इफ्तार करले तो न करे लेकिन जैसा की अपने यहाँ मश्हूर है कि कहीं हॉर्न या कहीं तोप या कोई और आवाज़ से मालूम होता है कि सूरज डूब गया तो अगर ये सब काम किसी आलिम या मुहक्कीक या दीन में एहतियात करने वाले के हुक्म से होता हो चाहें बजाने वाला फासिक हो तो भी रोज़ा इफ्तार कर सकते हैं।
  13. साहर के वक्त मुर्गे की अज़ान का एतबार नहीं है क्योंकि देखा गया है कि अक्सर मुर्गे पहले भी अज़ान दे देते बल्कि जाड़ों के मौसम में तो मुर्गे 2बजे से अज़ान देने लगते हैं हालांकि सुबह होने में बहुत वक्त होता है और मुर्गे उजाला या फिर बोलचाल की वजह से अज़ान देने लगते हैं ।

इस पोस्ट को लिखने मैं या कहने में कोई गलती हो गई हो तो अल्लाह से दुआ है की वो सरकारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदके से गलती को माफ कर दे।

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