क्या आप जानते हैं की रिसालत का बयान क्या है, अल्लाह ताला ने नबियों को क्यों बनाया, दुनिया को क्यों बनाया और इंसानों को क्यों बनाया। आप यहां पूरा वाकिया पढ़ा सकते है।
शहादते तौह़ीदो रिसालत इस्लाम के पांच अरकानों में से पहला और सबसे अहम अरकान है, हमने पिछली पोस्ट में अ़क़ीद-ए-तौह़ीद के बारे में जाना और अब हम अ़क़ीद-ए- रिसालत के बारे में जानेंगे|
- इस्लाम का तसव्वुरे रिसालत
- ज़रुरते रिसालत
Islam ka tasawware Risalat : इस्लाम का तसव्वुरे रिसालत
इस्लाम एक तरक्की पाने वाला मज़हब ही नहीं बलकि दुनियां पर छा जाने वाला दीन भी है|इस्लाम ने दूसरे मज़हबों के मुक़ाबले “रिसालत का एक ठोस और मुकम्मल तसव्वुर पेश किया है,जिससे दूसरी क़ौमों के दामन ख़ाली हैं,इसलिए युरोप के वह तमाम तरक्की पाने वाले मुल्कों के मज़हब ईसायत और यहूदियत से लेकर पूरबी इलाक़े के तमाम मज़हब इस्लाम के इस शानदार तसव्वुरे रिसालत से हक्का-बक्का हैं, इस्लाम ने ना तो रिसालत को बढ़ा कर ख़ुदा या ख़ुदा की औलाद के दर्जे पर पहुँचाया जैसा ईसाईयों ने किया “ईसा अलैहिस्सलाम” को अल्लाह का बेटा बता कर और न घटाकर आम इंसानों के बराबर कर दिया| दीन इस्लाम ने रिसालत का ऐसा ढांचा और नक्शा पेश किया जिसकी कोई मिसाल देखने को नहीं मिलती है |
Definition off Rasul : रसूल की परिभाषा
रसूल 3 ह़रफों से मिलकर बना है “इमाम राग़िब रदी अल्लाह ताला अन्हु ने फरमाया रसूल के मअ़ना आहिस्ता और नरमी के साथ चल पड़ने के हैं,
शरीयत में इसका माना अल्लाह ताला का अपने खास बंदों के ज़रिए नस्ले इंसानी तक अपना पैग़ामे ह़क़ और सच्चाई पहुंचाना है, जिसमे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हमारे नबी मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो तआ़ला अलैही वसल्लम तक तमाम नबियों और रसूलों की रिसालत और नबुव्वतें शामिल हैं | हर नबी अपनी अपनी जगह सच्चा है उन सब ने एक ही मकसद और एक ही मिशन के लिए काम किया है, इसलिए इस्लाम तमाम नबियों पर ईमान लाने को ज़रूरी क़रार देता है |
जैसा कि अल्लाह ताला ने इरशाद फरमाया

तरजुमा:- सब (दिल से) अल्लाह पर उसके फरिश्तों पर उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं|
Rasul kyu bheje gae: रसूल क्यों भेजे गए
अल्लाह तआला ने जिस कौम को हिदायत देना चाही, तो ऐसा नहीं किया कि फरिश्तों को भेजा या खुद कोई मोजिज़ा दिखाया, बल्कि उसी काैम में से एक नबी या एक रसूल बनाके भेजा ताकि वो उन्ही की ज़ुबान में उनको समझा सके जैसा कि अल्लाह ताला ने कुरान मजीद में इरशाद फरमाया

तरजुमा:-
रसूल जो खुशखबरी देने वाले डर सुनाने वाले थे ( इसलिए भेजे गए)ताकि(उन)पैग़म्बरों के (आ जाने) के बाद लोगों के लिए अल्लाह पर कोई उज़्र बाक़ी ना रहे|
यानी क़यामत में कोई यह कहने वाला ना हो कि हमें तो किसी ने कुछ बताया ही नहीं कि हमें कौन सा काम करना है, और कौन सा नहीं इसलिए हमें पता ही नहीं था,कि हम गलत कर रहे हैं या ठीक और नबियों को भी उन्हीं की कौम से भेजा ताकि वह उसकी बात आसानी से समझ सके|
और जब तमाम नबियों को क़ौम की हिदायत के लिए भेज दिया गया, लेकिन कुछ बुरी ओर बदबख्त क़ौमों ने नबियों की बातों को झुटलाया और यहां तक की हद से ज़्यादा बढ़ गए ,और नबियों का क़त्ल करने की सोचने लगे तो अल्लाह तआला का अज़ाब उन पर नाजि़ल हुआ|
Ek Nabi or Saari qaenat : एक नबी और सारी कायनात
जब नबियों को लोगों की हिदायत के लिए भेजा गया ,और जब बहुत सी क़ौमे हिदायत पाने लगीं, जिस नबी को जिस रसूल को जितनी हद दी गई उसने उस हद तक जिहाद किया, उसके बाद आदम अलैहिस्सलाम से लेकर क़यामत तक के तमाम बंदों के एक ही नबी बनाकर भेजे गए यानी हमारे आक़ा जनाब मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम और वह दुनिया के सबसे बड़े और सबसे अहम और अज़मत वाले दीन के रसूल क़रार पाए |
अल्लाह तआला ने क़ुरान मजीद मे इरशाद फरमाया

तरजुमा:- और ए महबूब हमने आपको तमाम लोगों के लिए खुशखबरी सुनाने वाला और डर सुनाने वाला बनाकर भेजा
अब जिस तरह तमाम जहानों का परवरदिगार एक ही है इसी तरह पूरी कायनात एक खातिमुन्नबिय्यीन सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम के परचम तले जमा कर दी गई|
और इस तरह तौह़ीद बारी तआला के साथ-साथ रिसालत का तसव्वुर भी अपने कमाल को पहुंच गया, आप सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की रिसालत ऐसा नहीं है, कि आप के दौर या आप के बाद के दौर तक ही सीमित है, बल्कि आदम अलैहिस्सलाम से लेकर ईसा अलैहिस्सलाम तक और क़यामत तक जितने भी लोग नबी रसूल हुए या होंगे तमाम आपकी रिसालत के तहत आएंगे | यही वजह है कि क़यामत के रोज़ जब उम्मतों से गवाही पूछी जाएगी, तो उनके नबियों को बुलाया जाएगा ,और जब नबियों से गवाही पूछी जाएगी, तो हमारे आका मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम को बुलाया जाएगा|
और क़ुरान मजीद में अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया

तरजुमा:- फिर उस दिन क्या हाल होगा जब हम हर उम्मत से एक गवाह लाएंगे और( ए महबूब )हम आप सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम को उन सब पर गवाह लाएंगे |
Zaroorate risalat : ज़रूरते रिसालत
तसव्वर ए रिसालत को जानने के बाद यह जानना ज़रूरी है कि निज़ामे रिसालत क्या है ?
और निज़ामे रिसालत और नबूवत की ज़रूरत और अहमियत क्या है ?
Insan ko paida Karne ka maqsad or zarurate risalat: इंसान को पैदा करने का मक़सद और ज़रुरते रिसालत
नादान साइंस दान कहते हैं कि कोई भी चीज़ किसी ने पैदा नहीं की बल्कि दुनिया का बनना यह एक दुर्घटना और इत्तेफाक है साइंस दानों का ख्याल है कि कायनात के बनने के वक्त बहुत सी गैसें घूम रही थीं, फिर जब वो कैसे आपस में टकराई तो कुछ गैसों ने ठोस होकर ज़मीन की शक्ल इख्तियार कर ली कुछ चांद कुछ सितारे और कुछ सूरज बन गए मआ़ज़अल्लाह| और हमारा इस्लाम हमारा मज़हब और अल्लाह की किताबें हमें बताती हैं कि अल्लाह तआला ने ज़मीन आसमान बनाए और जो कुछ भी उनमें है, साइंस दान एक तरफ तो यह कहते हैं की कायनात खुद ब खुद वजूद में आई और दूसरी तरफ एक पत्ते के हिलने की भी कोई ना कोई वजह बताते हैं जब एक छोटा सा पत्ता बगैर किसी वजह के नहीं हिल सकता तो फिर पूरी कायनात बग़ैर किसी वजह के कैसे वजूद में आ सकती है|
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त कुरान मजीद में इरशाद फरमाता है

तरजुमा:- तो क्या तुमने यह समझ लिया था कि हमने तुम्हें बेकार (बे मकसद) पैदा किया ,और यह के तुम हमारी तरफ लौट कर नहीं आओगे|
कौन है जो आसमान से पानी बरसाता है कौन है जिसने ज़मीन को फर्श बनाकर हमारे लिए रहने की जगह बनाया, कौन है जो मां के पेट से ज़िंदा बच्चा निकालता है ,कौन है जो पत्थर के बीच में भी कीड़ों को रिज़्क़ देता है , कौन है जो सूरज को पूरब से निकालता है , कौन है जिसने आसमान में सितारों को और चांद को खूबसूरती के लिए बनाया, कौन है जो परिंदों को रिज़्क़ अ़ता करता है, कौन है वह जो एक ही ज़मीन से पैदा होने वाली मिर्च में मिर्ची और नींबू में खट्टापन और आम में मीठा पन डालता है|
जब इंसान कायनात की निशानियो पर नज़र डालता है, और उसे अल्लाह तआला के कामों की पहचान होती है, तो वह पुकार उठता है

तरजुमा:- ऐ हमारे रब तूने यह( सब कुछ) बेहिकमत और बे तदबीर नहीं बनाया|
Maqsade risalat or nabuvvat : मक़सदे रिसालत और नबुव्वत
मक़सदे रिसालत और नबुव्वत के ज़रिए अल्लाह तआला ने अपने बंदों को पैदा करने का मक़सद समझाया और बंदों को बनाने वाले की पहचान कराई, और मरने के बाद क्या होगा यह भी नबुव्वत और रिसालत के ज़रिए हम तक पहुंचा क्योंकि इंसान के मन में यह बहुत लालसा थी, कि मरने के बाद हमारा क्या होगा इसलिए इंसान का इल्म कभी भी मुकम्मल नहीं हो सकता , जब तक वह अपने आप को रिसालत और नबुव्वत के अंदर ना रख ले|
Iman birrisalat ke taqaze : ईमान बिर्रसालत के तक़ाज़े
कुराने पाक ने जिस खूबसूरत अंदाज़ में और बार-बार मक़ाम में रिसालत को बयान किया है,जिससे ज़ाहिर होता है कि रिसालत को बुनियादी अहमियत हासिल है और कुरान कुछ अच्छे अंदाज़ से आशिक़ और वफादार उम्मत के दिल में इश्के रसूल पैदा करना चाहता है,, इसीलिए किसी सच्चे और अच्छे उम्मती के लिए जायज़ नहीं ,कि कलमा पढ़ कर फारिग़ बैठ जाए, और यह समझ ले कि अब मेरे ऊपर कोई ज़िम्मेदारी नहीं है अब मुझे निजात का परवाना मिल गया है जिस तरह चाहूं ज़िंदगी जियूँ|
यह ख़याल गलत है, हकीक़त यह है के ईमान वह है जो उम्मती को अपने नबी का आशिक और तालिब बना देता है और वह खुद एक परवाने की तरह हो जाता है, उसकी दिल और उसकी याद के बग़ैर उसे कहीं करार ना आए चलते फिरते उठते बैठते हमेशा अपने नबी की याद को दिल में बिठाए रखे|
इसलिए नबी पर ईमान लाने के कुछ तक़ाज़े हैं जिनको उम्मती के लिए मानना जरूरी है-
- अपने नबी सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की दिलो जान से ताज़ीम करे |
- नबी सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम को बेमिसाल जाने |
- अल्लाह ताला ने जो कमालात और मरतबे उन्हें अता फरमाए हैं उन्हें तस्लीम करे |
- उनके ज़िक्र से खुश हो |
- उनके फज़ाइल और कमालात की बातें सुनकर उसका दिल बाग बाग हो जाए |
Dil ki gahrayyo se Nabi ki tazeem Karna : दिल की गहराइयों से नबी की ताज़ीम करना
हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की जा़त पर ईमान लाने के बाद पहला तक़ाज़ा यह है, कि इंसान उनकी ताज़ीम और तकरीम करे
ताज़ीमे रिसालत एक ऐसा मसअला है जिसे क़ुरान मजीद ने बहुत अहमियत दी है अल्लाह तआला ने अपने नबी की शान ऐसे बयान की है जिस तरह कोई दूसरा बयान नहीं कर सकता|
इंसान की फितरत भी अजीब है वह बड़े ग़ौरो फिक्र से इल्मो ह़िकमत का रसिया , और फज़लो कमाल का जानने वाला है|
उसे किसी शख्सियत के अंदर पाए जाने वाली खुसूसियत और कमालात का पता चल जाए तो वह बिन देखे उस पर दिलों जान फिदा कर देता है| और उसके तसव्वुर में गुम हो जाता है हर महफिल में उसी का ज़िक्र करता है|
इसी उसूल के मुताबिक क़ुराने पाक ने ईमान वालों के दिलों में हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की मोहब्बत और अक़ीदत पैदा करने के लिए सूरह फतह की आयत में आला तरीन शान बयान की” वह गवाह और शाहिद हैं” ” बशीर और नजीर हैं “ताकि उम्मती उस हक़ीकत से आगाह होकर उसके रसूल बड़े ही मेहरबान और शफीक़ जो क़यामत के दिन अपनी गुनाहगार उम्मत के हक़ में गवाही देंगे और किसी भी मरहले में उसे बेयारो मददगार नहीं छोड़ेंगे|
इस हवाले से उनकी ज़ात निहायत ही क़ाबिले क़द्र अज़ीमो जलील और मोहब्बत के लायक़ हैं, इसलिए मोमिन का हक़ है कि वह भी अपने नबी सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम से टूट कर मोहब्बत करे|
अल्लाह ताला ने कुरान मजीद में इरशाद फरमाया

तरजुमा:- ए नबी बेशक हमने आपको शहादत व बशारत और अंदाज़ के मनसब पर फाइल करके भेजा है,(ऐ लोगों यह इसलिए) ताकि तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की ख़ूब ताज़ीम और तौकीर करो”|
कुरान मजीद ने दूसरी जगह टूट कर प्यार करने ताज़ीम और तौकीर का यही अमल इख्तियार करने वालों के लिए दुनिया और आखिरत में कामयाबी की बशारत दी है |
अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया

तरजुमा:- तो जो लोग ईमान लाए और उनकी (मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम) ख़ूब ताज़ीम और मदद की और जो नूर उनके साथ उतारा गया(क़ुरान मजीद) उसकी पैरवी की तो यही लोग मसर्रत और कामयाबी हासिल करने वाले होंगे”|
दोनों आयात में नबीये करीम सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की ताज़ीम का हुक्म देने के लिए लफ़्ज़े “तअ़ज़ीर”लाया गया है, जो अपनी जगह बड़ा मअ़ना रखता है यह लफ्ज़ आम किस्म की ताजीम और तकरीम के लिए नहीं बोला जाता, बल्कि ताज़ीम की उस हालत पर बोला जाता है, जो ताज़ीम की इनतिहाई हदों को छू ले |
आम इंसानों की ताज़ीम के लिए अगर कोई इनतिहाई दर्जे के लफ्ज़ों को इस्तेमाल करता है , तो कोई यह कह सकता है कि बढ़ा चढ़ाकर बोल रहा है , मगर हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की ज़ात ए पाक वह पाक ज़ात है, जिसके बारे में यह सवाल पैदा नहीं होता कि उनकी ताज़ीम और तौकीर में कितने ऊंचे लफ्ज़ों को लाना है, इसलिए क़ुराने अ़ज़ीम ने लफ्ज़े “तअ़ज़ीर” नबीये करीम सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की ताज़ीम के लिए इस्तेमाल किया है, ताकि ईमान वाले उनकी ताज़ीम के लिए जितने उम्दा अल्फ़ाज़ चाहे इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि नबी ए करीम सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की शान इतनी बुलंद मरतबे वाली है ,और रब्बे करीम ने इतनी अ़ज़मतें उनको अ़ता फ़रमाई हैं, के उम्मती जो भी शान जो भी अ़ज़मत बयान करेगा वह नबीये करीम सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम के अंदर मौजूद होगी |
नबी ए करीम सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की जिस तरह चाहो ताज़ीम करो नअ़त दुरूदो सलाम खूब खूब पढ़ा करो,क्योंकि हज़रत हस्सान रज़िअल्लाहुतआ़ला अन्हु जब नअ़त पढ़ा करते थे, तो आप सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम उनको दुआ़ दिया करते थे-

ए अल्लाह जिब्रील अलैहिस्सलाम को हस्सान की ताई़द और तक़वियत के लिए मामूर फरमा दे|
इसलिए ईमान का पहला तक़ाज़ा यह है, कि हुक्मे क़ुरान के मुताबिक दिल खोलकर आप सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की ताज़ीम की जाए और मदह़ो ,नाअ़त, दुरुदो सलाम के महकते फूल बतौरे नज़रान- ए-अ़क़ीदत आप सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की ज़ाते अक़दस की तरफ निहायत अदब ओ एहतराम से पेश किए जाएं|
इस पोस्ट को लिखने मैं या कहने में कोई गलती हो गई हो तो अल्लाह से दुआ है की वो सरकारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदके से गलती को माफ कर दे।