nafli roza kya hai | nafli roza ki dua, niyat & fazilat

अल्लाह तआला की हिक्मत:- Allah taala ki hikmat

यह अल्लाह तआला की हिक्मत है कि उसने फराइज़ के बाद उसी इबादत को निफली तौर पर भी शुरू किया है । जिसको करने से उन्हें अल्लाह तबारक वा तआला की कुर्बत और बहुत बड़ा सवाब हासिल होता है जैसा कि हमारे आका और मौला जनाब मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया – “अल्लाह अज़्ज़ावजल का फरमान है मेरा बंदा उस चीज़ से जो मैंने उसके ऊपर फर्ज़ की है उसके साथ मेरा कुर्ब हासिल करता है तो वो मुझे सब से ज़्यादा पसंद है , मेरा बंदा नवाफिल के साथ मेरा कुर्ब हासिल करता रहता है यहां तक कि मैं उससे मुहब्बत करने लगता हूं तो जब मन उससे मुहब्बत करने लगता हूं तो उसका कान बन जाता हूं जिससे वो सुनता है और उसकी आंख बन जाता हूं जिससे वो देखता है उसका हाथ बन जाता हूं जिससे वो पकड़ता है और उसकी टांग बन जाता हूं जिससे वो चलता है और अगर वोह मुझसे सवाल करता है तो मैं उसे ज़रूर देता हूं और अगर वोह मेरी पनाह में आना चाहता है तो मैं उसे पनाह देता हूं (सहीह बुखारी शरीफ 6502)

निफली रोज़ों को 2 किस्में हैं ।

(1) निफली मुतलक ;- (nafli mutlaq)

यानी किसी भी वक्त और किसी भी हालत में रोज़ा रखना । मुसलमान के लिए ये मुमकिन है की साल के किसी भी दिन और किसी भी महीने में रोज़ा रख सकता है लेकिन कुछ दिनों को छोड़कर उन दिनों में रोज़े से मना किया गया है जैसे ईदुल फितर और ईदुल अज़हा के दिन क्यूंकि इन दोनों दिनों में रोज़ा रखना हराम है और ईदुल अज़हा के बाद 3 दिन रोज़ा रखना हराम है मगर हज में जिसके पास कुर्बानी न हो वोह रोज़ा रख सकता है उसके अलावा सिर्फ जुम्मे का रोज़ा रखने से नबीये करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मना फरमाया।

निफली मुतलक रोज़ों की सबसे अच्छी और बेहतर सूरत ये है कि जो उसकी ताक़त रखता हो कि एक दिन रोज़ा रखा जाए और एक दिन इफ्तार किया जाए (यानी दूसरे दिन छोड़ा जाए)। जैसा कि हदीस में आया है – अल्लाह तआला के यहां सबसे महबूब और पसंदीदा नमाज़ और रोज़ा दाऊद अलैहिस्सलाम की नमाज़ और रोज़ा है तो आधी रात सोते और रात के तीसरे हिस्से में कयाम करते और एक दिन रोज़ा रखते थे और एक दिन नहीं रखते थे (बुखारी शरीफ 1131,मुस्लिम शरीफ 1159)।

(2) निफ्ली मुकय्यद:- (nafli mukayyad)

और ये निफ्ली मुतलक से अफ़ज़ल है इसकी दो क़िस्म हैं –

(1) किसी शख्स की हालत के साथ मुकय्यद:- kisi shakhs ki halat ke sath mukayyad

मसलन वो नौजवान जो शादी की ताक़त नहीं रखता तो जब तक वो कुंवारा है उसको चाहिए कि वो रोज़े रखे और इसकी हदीस में बहुत ताकीद आई है ये रोज़े उस शख़्स की नफ्सी खुआहिश को खत्म करते हैं और रोज़े की ताकीद उतनी ज़्यादा होगी जितना नफ्स उसे बुरे बसबसे दिखाएगा । तो ये उस शख्स की हालत के साथ मुकय्यद हुए ।

जैसा कि हदीस में आया है-

अब्दुल्लाह इब्ने मसूद रज़ीयल्लाहु तआला अन्हुमा बयान करते हैं कि हम जवानी की हालत में नबिये करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ थे और हमारे पास कोई मालो ज़र नहीं था तो नबिये करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फ़रमाया ऐ नौजवानों की जमात जो भी तुम में से ताकत रखता है वोह शादी करे क्यूंकि वो आंखों में शर्म पैदा करती है और शर्मगाह के लिए बेहतर है और जो ताकत नहीं रखता तो वो रोज़े रखे क्योंकि ये उसके लिए हाजत को खत्म करने वाला है (सही बुखारी हदीस 5066)।

(2) जो किसी मुकर्रर वक्त में रखे जाते हैं:- jo kisi mukarrar waqt men rakhe jaate hain

इसकी कई किस्में हैं

हफ्ता, महीने और साल

हफ्ता:- (hafta)

जैसे पीर और जुमेरात का रोज़ा (ये रोज़ा मुस्ताह्ब है आएशा सिद्दीका रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं “नबिये करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पीर और जुमेरात के दिन कोशिश करके जानबूझकर रोज़ा रखते थे “(नसाई वगैरह हदीस नंबर 2320)
नबिये करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से पीर और जुमेरात के रोज़े के बारे में सवाल किया गया तो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाया “ये वोह दिन हैं जिन में अल्लाह रब्बुल आलामीन पर आमाल पेश किए जाते हैं तो मैं चाहता हूं मेरे आमाल पेश किए जाएं तो मैं रोज़े से होऊं “(नसाई हदीस नंबर 2358)

और जब नबिये करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से पीर के रोज़े के बारे में सवाल किया गया तो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाया “इसी दिन मैं पैदा हुआ और इसी दिन मुझ पर वही नाज़िल की गई (सही मुस्लिम हदीद नंबर 1162)।

महीने:- Monthly

महीने में 3 रोज़े रखना मुस्तहब हैं –

हदीद:- अबु हुरैरा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं कि मेरे आका ने मुझे 3 चीज़ों की नसीहत की ” आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाया कि मैं मरने तक न छोडूं हर महीने में 3 रोज़े और चाश्त की नमाज़ और बित्र पढ़ने के बाद सोना (बुखारी शरीफ 1178)
और महीने की इन निफ्ली रोज़ों में बेहतर ये है की उर्दू महीने के दरमियान में रखना चाहिए – अबूज़र रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं “मुझसे आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाया अगर महीने में कोई रोज़े रखना चाहते हो तो 13,14,15 के रोज़े रखो ” (नसाई हदीस नंबर 2424)

साल :- Yearly

इनमें कुछ दिन तो मुकर्रर हैं और कुछ ऐसे हैं जिनमें रोज़े रखना सुन्नत हैं –

मुकर्रर दिनों के रोज़े:- mukarrar dino ke roze

यौमे आशूरा:- youme aashoora

10 मुहर्रमुल हराम को आशूरा कहा जाता है –
इब्ने अब्बास रज़ीयल्लाहु तआला अन्हुमा से आशूरा के रोज़े के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने फरमाया “मुझे इल्म नहीं कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने आशूरा के अलावा जिस दिन रोज़ा रखा हो और आप आशूरा (के रोज़े ) पर उसको फज़ीलत देते हों रमज़ान के अलावा “
और क्यूंकि इस दिन यहूदी भी रोज़ा रखते हैं इसलिए सुन्नत तरीका ये है कि हमें आशूरा से एक दिन पहले भी रोज़ा रख लेना चाहिए इससे यहूदियों की मुखालिफत भी हो जाएगी ।

यौमे अरफा :- youme Arfa

यानी नौ ज़िलहिज का रोज़ा इस दिन का रोज़ा उस शख्स के लिए रखना मुस्तहब है जो कि हज करने ना गया हो और और अरफात में ठहरा हुआ हो जैसा कि नबिये करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का फ़रमान है – यौमे अरफा का रोज़ा गुज़रे हुए और आने वाले एक साल के गुनाहों का कफ्फारा बनता है और यौमे आशूरा (10 मुहर्रम) के रोज़े में मेरी अल्लाह से उम्मीद है कि गुज़रे हुए एक साल के गुनाहों का कफ्फारा बनेगा

(नोट! किसी भी नेक अमल जिसमे गुनाह माफ होते हैं उनसे सिर्फ सगीरा गुनाह माफ होते हैं कबीरा नहीं होते बल्कि कबीरा गुनाहों को माफी अल्लाह से मांगना चाहिए अल्लाह रहीम है और बक्शने वाला है) ।

सुन्नत रोज़े:- sunnat roze

शव्वाल महीने के रोज़े:- shawwal maheene ke roze

शव्वाल के महीने में 6 रोज़े रखना सुन्नत है जैसा कि नबिये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “जिसने रमज़ान के रोज़े रखने के बाद शव्वाल के 6 रोज़े रखे तो गोया उसने पूरे साल ही रोज़े रखे ( सही मुस्लिम 7859)।

मुहर्रम के रोज़े:- muharram ke roze

इस महीने में 2 रोज़े रखना सुन्नत हैं, नबिये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया -” रमज़ान के बाद सबसे अफ़ज़ल रोज़े अल्लाह के महीने मुहर्रम के हैं और फर्ज़ नमाज़ के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ रात की नमाज़ है ( सही मुस्लिम हदीद नंबर 1163)

शाबान के रोज़े:- shaban ke roze

आएशा सिद्दीका रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा बयान करती हैं “रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोज़े रखते तो हम कहते आप इफ्तार करेंगे ही नहीं (यानी आप अब रमज़ान की तरह ही रोज़े रखते चले जाएंगे सेहरी इफ्तार के साथ) और जब रोज़े इफ्तार करते और न रखते तो हम ये कहते कि अब रोज़े रखेंगे ही नहीं और फरमाती हैं मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रमज़ान के अलावा किसी महीने के पूरे रोज़े रखते हुए नहीं देखा और मैंने शाबान के अलावा किसी महीने में सबसे ज़्यादा रोज़े रखते हुए नहीं देखा आप शाबान का तकरीबन सारा महीना ही रोज़े रखते थे (सही बुखारी हदीस नंबर 1969)

निफ्ली रोज़ों की फज़ीलत:- nafli rozon ki fazeelat

  • वोह मुसलमान जो अच्छे काम और भलाई के रास्तों पे चलता है उसे मालूम होना चाहिए कि अल्लाह तआला के लिए निफली रोज़े रखना कितना सवाब का काम है जैसा कि हदीस में आया है –
  • रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़रमान है “जो अल्लाह तआला के रास्ते में रोज़ा रखता है अल्लाह तआला उसे उस दिन के बदले में उसके चेहरे को 70 साल जहन्नम से दूर फरमा देता है (नसाई हदीस नंबर 2247)
  • हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि अल्लाह तआला हमें उनमें से करदे जो जहन्नम और उसकी गर्मी से दूर किए जाएंगे और वो नेमतों वाले होंगे ।

Leave a Comment